जो अल्लाह के लिए छोटा बन जाएगा,अल्लाह उसको बुलंदी पर पहुँचा देगा : तौहीद नदवी वो मुसलमान है ही नहीं जिसके शर से उसका पड़ोसी महफ़ूज़ ना हो : राशिद हुसैन
जलसाए सीरतुन नबी व मदहे सहाबा का हुआ आयोजन

रुदौली-अयोध्या। रुदौली नगर के मोहल्ला शेखाना में जलसाए सीरतुन नबी व मदहे सहाबा का आयोजन बड़े ही अदब व एहतराम के साथ संपन्न हुआ। कार्यक्रम का आग़ाज़ हाफ़िज़ ज़करिया क़ासमी ने तिलावत-ए-कुरान पाक से किया। सदारत मुफ़्ती राशिद हुसैन नदवी ने व संचालन मौलाना खादिम नदवी ने किया। जलसे को ख़िताब करते हुए राशिद हुसैन ने अपने बयान में पड़ोसी के हुकूक़ पर जोर देते हुए कहा कि वो मुसलमान है ही नहीं जिसके शर से उसका पड़ोसी महफ़ूज़ न हो। उन्होंने यह भी कहा कि माँ बाप की खिदमत सबसे अहम फर्ज़ है। उन्हें किसी भी तरह से कोई तकलीफ़ न पहुँचाई जाए। यहाँ तक कि माँ बाप को उफ़्फ़ तक कहना भी गुनाह है। मुफ़्ती नदवी ने बीवी के हुकूक़ पर कहा कि तुममें सबसे अच्छा वो है जो अपने घरवालों के लिए बेहतर हो। उन्होंने कहा कि हमारी नमाज़ से किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। नमाज़ हम ख़ुद के लिए पढ़ते है। अगर चाहते हो की समाज में फ़र्क़ पड़े तो हमे हमारे आमाल अच्छे करने होंगे। आमाल से ही समाज पर असर होगा। मुसलमान झूठ न बोले नाप-तौल में कमी न करे। यही असल इस्लामी तालीम है। तौहीद आलम नदवी ने कहा कि हक़ की आवाज़ उठाने वाले को तकलीफ़ से गुज़रना पड़ता है। लेकिन यही अल्लाह का इम्तिहान है। उन्होंने कहा कि जो अल्लाह के लिए छोटा बन जाएगा अल्लाह उसे बुलंदी तक पहुँचा देगा। उन्होंने कहा की शेख़ मख़्दूम अहमद अब्दुल हक़ रुदौलवी ने हमेशा हक़ की बात की। हक़ का पैग़ाम दिया और हम आज उन्ही की बस्ती में है। और यहाँ से ये पैग़ाम लेकर जाए की सबसे पहले दिल के रुख़ को सही करना है। और हर इंसान के लिए दिल को पाक साफ रखना है। उन्होंने कहा कि नबी की तालीम यह है कि इंसान दूसरों के सुख-दुख में शामिल हो। और अगर किसी को तकलीफ़ पहुँचे तो पूरी उम्मत उस दर्द को महसूस करे। उन्होंने औलाद की तालीम व तरबियत पर कहा कि अगर बच्चों को सही इस्लामी तालीम न दी गई तो क़यामत के दिन यही औलाद अपने वालिदैन के खिलाफ गवाही देगी। इसलिए बच्चों को रोज़ कम से कम एक घंटा दीनी तालीम ज़रूर दी जाए। वही मौलाना शब्बीर नदवी ने कहा कि नबी की मोहब्बत के बिना हर चीज़ अधूरी है। और हमे नबी के बताए हुए रास्ते पर चल कर ज़िंदगी गुज़ारनी चाहिए। इसी तरह मुफ़्ती मोहम्मद फुरकान और मुफ़्ती अहसन अब्दुल हक़ ने भी अपने बयानात में सीरत-ए-नबी और सहाबा की ज़िंदगी को अपनाने पर ज़ोर दिया। कार्यक्रम में उमर अब्दुल्ला बाराबंकवी ने नात-ए-पाक पेश कर महफ़िल को रूहानी कैफ़ियत से भर दिया। अंत में दुआ के बाद जलसे का समापन हुआ। जलसे में बड़ी तादाद में उलमा-ए-कराम, बुजुर्गान और अवाम मौजूद वक्ताओं ने आयोजक हाफिज मोहम्मद जलीस आसिफ़ को बेहतरीन और कामयाब जलसे के लिए मुबारकबाद दिया। इस मौके पर सूफी मुईनउद्दीन हाफिज फुरकान हाफिज अदनान मौलाना फ़ैज़ान इमाम ईदगाह दरियाबाद हाफिज अब्दुल मन्नान हाफिज शारिक अकरम शरफुद्दीन शान मोहम्मद मशीउद्दीन गुफरान असद ज़ीशान शमीम मो आमिर सहित सैकड़ो लोग मौजूद रहे।