22 अप्रैल की रात्रि में दिखेंगे शानदार टूटते हुए तारे,

अगर आप अंतरिक्ष में थोड़ी सी भी रुचि रखते हैं तो यह ख़बर वास्तव में आपके लिए ही है, जी हाँ ,हम बात कर रहे हैं अंतरिक्ष में घटित होने वाले रोमांचक नज़ारों में से एक की, जो कि 22 अप्रैल की रात्रि में घटित होने वाला है।
अंतरिक्ष में रुचि रखने वाले अंतरिक्ष प्रेमियों को एक बार फिर होगा रोमांच का अनुभव ।
हम बात कर रहे हैं 22 अप्रैल की रात्रि में होने वाली शानदार उल्का वृष्टि/ टूटते हुए तारों की,
क्या है उल्का वृष्टि/टूटते हुए तारे_
वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला ( तारामण्डल) गोरखपुर के खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि, सौर मंडल के ग्रहों के बीच के अंतरिक्ष में पत्थर और लोहे के अनगिनत छोटे छोटे कंकड़ या कण मौजूद हैं, ऐसा कोई कण जब पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण में आने पर तीव्र वेग से पृथ्वी के वायुमंडलीय घर्षण के कारण रात्रि के आकाश में क्षण भर के लिए चमक उठता है, इसी को उल्का या टूटता तारा कहा जाता है,
खगोलविद अमर पाल सिंह ने बताया कि उल्का वृष्टि का संबंध किसी न किसी धूमकेतुओं से ही होता है, धूमकेतु जोकि धूलिकड़ों और बर्फ से बनी गैसों के पिण्ड होते हैं ये लंबी दीर्घब्रत्ताकार कक्षाओं में सूर्य की परिक्रमा करते हैं, इनसे निकले हुए कण इनकी कक्षाओं में चक्कर लगाते रहते हैं, जब पृथ्वी वार्षिक ग़मन के दौरान किसी धूमकेतु के यात्रापथ से गुजरती है, तब धूमकेतु के बे कण पृथ्वी के वायुमंडल में घर्षण के कारण जलने लगते हैं और उल्काओं के रूप में चमकते हुए दिखाई देते हैं, तभी रात्रि के दौरान आकाश में हमें उल्का वृष्टि का आकर्षक नज़ारा दिखाई देता है, इसी को खगोल विज्ञान की भाषा में मेटियर शॉवर या उल्का वृष्टि या केतु वृष्टि कहा जाता है, लेकिन आम जन मानस की भाषा में तो इसे ही टूटते हुए तारे कहा जाता है,
क्या होती है लिरिड मीटीयर शॉवर/ कैसे देखें इसे
लिरिड उल्का बौछार एक खगोलीय घटना है, जो हर साल अप्रैल के अंत में होती है, यह उल्का वर्षा पृथ्वी के वायुमंडल में धूमकेतु थैचर ( C/1861G1) के मलबे के कणों के द्वारा होती है, थैचर धूमकेतु 415 वर्षों में सूर्य का एक चक्कर लगाता है, और यह धूमकेतु दुबारा वर्ष 2276 में फ़िर से पृथ्वी से नज़र आयेगा, फिलहाल के लिए आप इस से होने वाली उल्का वृष्टि का आनंद तो उठा ही सकते हैं, वैसे तो यह उल्का वृष्टि प्रत्येक वर्ष 16 अप्रैल से शुरू होकर लगभग 25 से 30 अप्रैल तक भी दिखाई देती है ,लेकिन इस बार यह 22 अप्रैल की मध्य रात्रि से 23 अप्रैल की भोर तक अपने चरम पर दिखाई देगी, इस दौरान लगभग 10 से 20 उल्काएं प्रति घंटे तक दिखाई देने की संभावना है, लिरिड मीटीयर शॉवर वर्ष की बहुत ही चमकदार उल्का वृष्टि नहीं होती है इसलिए आप को इसे सावधानी पूर्वक देखने की आवश्यकता है जैसे कि कम से कम आधा घंटा पहले अपनी आंखों को अंधेरे के सापेक्ष समायोजित करें और अति उच्च स्तर के बाहरी प्रकाश से दूरी बनाएं तब आसानी से आप इसका आनंद उठा सकते हैं,
खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि
प्रत्येक वर्ष अप्रैल में होने वाली यह लिरिड मीटीयर शॉवर/उल्का वृष्टि आकाश में लायरा कांस्टेलेशन जिसे हिंदी में वीणा तारामण्डल कहा जाता है यह एक छोटा लेकिन पहचानने योग्य तारामंडल है, जोकि आजकल पूर्वोत्तर आकाश में स्थित लगभग मध्यरात्रि में आकाश साफ़ होने पर बिल्कुल साफ दिखाई देता है , इसका सबसे चमकीला तारा वेगा है, जो आकाश का पाँचवा सबसे चमकीला तारा भी है,
यह उल्का वृष्टि उसी लायरा तारामंडल की तरफ़ से आती हुई दिखाई देगी इसीलिए इस उल्का वृष्टि को लिरिड मीटीयर शॉवर कहा जाता है, और यह जिस तारामण्डल से आती हुई दिखाई देती है जिसे आकाश में रेडिएंट प्वाइंट ( बिकीरनक् बिंदु) कहा जाता है,वैसे तो यह आकाश में किसी भी तरफ़ से आती हुई दिखाई दे सकती हैं,
अमर पाल सिंह ने बताया कि
इस बार की उल्का वृष्टि में आप एक घण्टे में कम से कम 10 से लेकर 20 उल्काओं का दीदार कर सकते हैं, जो कि पृथ्वी के धरातल से लगभग 100 किलोमीटर ऊपर 47 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से चमकती हुई उल्काएं दिखाई देंगी, इस अप्रैल की उल्का वृष्टि का कारण है धूमकेतु थैचर (C/1861G1) अप्रैल में होने वाली उल्का वृष्टि/टूटते हुए तारों को नाम दिया जाता है लिरिड मेटियर्र शॉवर,
क्यों और किस तरीक़े से देखें
वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला (तारामण्डल ) गोरखपुर के खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि आज के दौड़धूप भरी दुनिया में लोग प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं और मोबाइल फोन पर स्क्रीन समय बढ़ता जा रहा है जो कई परेशानियों का कारण भी बनता जा रहा है, ऐसे में लोगों को अंतरिक्ष विज्ञान में कुछ शौक रखने से कई समस्याओं के समाधान मिल सकते हैं , जैसे कि केवल साधारण आंखों से आकाश को निहारने में कोई क़ीमत और तकनीकी उपकरण की भी जरूरत नहीं है और आपको प्रकृति की जादुई गोद में नज़दीक होने का भी अहसास होगा, और उल्का वृष्टि को देखने के लिए आपको किसी भी ख़ास या अतिरिक्त प्रकार के दूरबीन या अन्य उपकरण की कोई भी आवश्यकता नहीं होती है, आप सीधे तौर से अपनी साधारण आंखों से रात्रि के साफ़ आकाश में इसे आसानी से अपने घरों से ही देख सकते हैं, जहां ज्यादा प्रकाश प्रदूषण (लाइट पॉल्यूशन) न हो, रात्रि के आकाश में इस उल्का वृष्टि को देखने के लिए किसी सुरक्षित ख़ास साफ़ जगह का चयन करें और लेटकर आकाश की ओर उन्मुख होकर रात्रि के आकाश को भरपूर तरीक़े से निहारें तब यह आकर्षक नज़ारा आसानी से देख सकते हैं, वैसे तो शाम होते ही उल्का वृष्टि/ टूटते हुए तारों का दीदार होना शुरु हो जायेगा, लेकिन ये 22 अप्रैल की मध्य रात्रि से 23 अप्रैल की भोर तक अपने चरम सीमा पर दिखाई देंगी,
द्वारा _ अमर पाल सिंह, खगोलविद ,वीर बहादुर सिंह नक्षत्रशाला (तारामंडल) गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत