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41 बर्ष बाद अंतरिक्ष में भारत के नए कदम और चुनौतियां

भारतीय अंतरिक्ष यात्री,
(गगन यात्री), शुभांशु शुक्ला की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ( आई०एस ०एस०) की यात्रा और भारतीय अंतरिक्षीय भविष्य की सफलता के मायने।

 

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि _
जैसा कि सर्वविदित है कि हमारे देश भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंच कर एक नया इतिहास रच दिया है, शुभांशु शुक्ला,जोकि भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन भी हैं उन्होंने धरती पर सफलतम वापसी की है एवम् उनकी वापसी को लेकर सम्पूर्ण देश को गर्व है ।शुभांशु और एक्सिओम-4 मिशन के उनके अन्य तीन साथी 10 मिनट की देरी से सोमवार शाम 4.45 बजे (भारतीय समयानुसार) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) से धरती के लिए रवाना हुए। अंतरिक्ष यात्रियों का यह दल लगभग 18 दिनों तक आई० एस० एस० पर अनुसंधानयुक्त वैज्ञानिक प्रयोग करने के साथ ही, मंगलबार को 22.5 घंटे का पुनः प्रवेश सफर पूरा करने के बाद मंगलवार दोपहर करीब 3 बजे (भारतीय समयानुसार) कैलिफोर्निया के समुद्री तट पर उतरा, इसके साथ ही एक्सिओम-4 मिशन पूरा करने मे सफलता हासिल हुई।
खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि
स्पेसएक्स, ‘ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट और एक्सिओम स्पेस के एएक्स-4 मिशन के चारों अंतरिक्ष यात्रियों ने कैलिफोर्निया के सैन डिएगो तट के पास प्रशांत महासागर में स्प्लैशडाउन करके एक कीर्तिमान स्थापित किया ।
शुभांशु के अलावा धरती पर लौटे ड्रैगन यान में एक्सिओम-4 की मिशन कमांडर पैगी व्हिटसन, मिशन विशेषज्ञ पोलैंड के स्लावोज उज्नान्स्की-विस्नीव्स्की और हंगरी के टिबोर कापू सवार थे। पृथ्वी पर आने से पहले शुभांशु और उनके तीनों साथियों ने आईएसएस में पहले से मौजूद दूसरे अंतरिक्ष यात्रियों को गले लगाया और हाथ मिलाने के बाद धरती पर वापसी के लिए ड्रैगन में सवार हो कर पृथ्वी पर सकुशल वापसी की।

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा करीब 18 दिन में 60 से ज़्यादा वैज्ञानिक प्रयोग किए। जिनमें लगभग 7 प्रयोग भारत के थे।

शुंभाशु ने अपने इस मिशन के दौरान अंतरिक्ष में करीब 18 दिन का समय बिताया है। इस दौरान उन्होंने आई ०एस० एस० की माइक्रो ग्रैविटी प्रोगशाला में, कई महत्त्वपूर्ण प्रयोग भी किए, जोकि इसरो की टीम द्वारा सुपुर्द किए गए थे, कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं जैसे माइक्रो एल्गी, मसल्स लॉस, प्लांट ग्रोथ इत्यादि।

अमर पाल सिंह ने बताया कि यह मिशन भारत, पोलैंड और हंगरी के लिए ऐतिहासिक था, क्योंकि चार दशकों बाद इन देशों के अंतरिक्ष यात्रियों ने किसी मानवयुक्त मिशन में भाग लिया। मिशन का नेतृत्व अमेरिका की अनुभवी अंतरिक्ष यात्री और एक्सिओम की कमांडर पेगी व्हिटसन ने किया था।

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि
अब इस मिशन की थोड़ा विस्तार से जानकारी प्राप्त करने की कोशिश करते हैं
तो हम पाते हैं कि कोई भी मिशन पूरी सफलता सुनिश्चित होने के बाद भी, कोई भी अंतरिक्ष यात्रा का मिशन क्यों और कितना जोखिम भरा होता हो सकता है। जो जानना अति आवश्यक महत्वपूर्ण है।

कितने जोखिमों और तकनीकियों से भरी हो सकती है कोई भी अंतरिक्ष की यात्रा।

खगोल विद अमर पाल सिंह ने इस बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी देते हुए कहा कि अगर किसी भी मिशन में कोई भी समस्या होती है तब कोई भी मिशन कितना जटिल हो सकता है, अमर पाल सिंह ने बताया कि
अंतरिक्ष यात्रियों को इस दौरान कई प्रकार की स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जो कि बहुत ही अलग हो सकती हैं, जैसे कि अगर आचनक से हीलियम या ऑक्सीजन गैस का रिसाव होना हो या थ्रस्टर्स का ठीक से काम न कर पाना हो या यान का ठीक से मेनूओवर न होना हो या सम्पर्क का ब्लैकआउट हो जाना हो या पृथ्वी पर वापसी के समय पैराशूट का ठीक से न कार्य करना हो या डॉकिंग या अंडॉकिंग का ठीक से न हो पाना हो या स्प्लैश डाउन लैंडिंग में कोई दिक्कत हो या री यूसेबल स्पेस फ़्लाइट में कहीं भी सफ़र के दौरान कोई तकनीकी खामी हो सकती हैं या अन्य जैसे कि यान का पृथ्वी के वायुमंडल को उच्च गति से पार करते समय यदि मॉड्यूल में कोई भी तकनीकी खराबी आती है तो उस से पार पाना नामुमकिन सा ही होता है, या फिर आई०एस ०एस० पर डॉकिंग / अनडॉकिंग के समय दिक्कत हो सकती हैं और इसी तरह से दुबारा भी स्पेस क्राफ्ट को हजारों किलोमीटर प्रति घंटे से पृथ्वी के वायुमंडल में री एंटर ( पुनः दाख़िल) होते समय भी घर्षण के कारण भीषण गर्मी की बेरहम मार और वायुमंडलीय दबाव झेलना पड़ता है जिस दौरान अचानक कैप्सूल की शील्ड भी ख़राब हो सकती हैं अगर इस दौरान कोई भी तकनीकी खराबी या अन्य और खामी आती हैं तो यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती बन जाती हैं , इसीलिए पहले से ही समस्त उपकरणों को भली भांति ऑन बोर्ड कम्प्यूटर तंत्रों से जांच कर लिया जाता है और उच्च गुणवत्ता वाले विशेष उपकरणों का ही उपयोग किया जाता है, जिस से किसी भी स्तर पर और कोई भी तकनीकी खामी होने की कतई भी गुंजाइश नहीं हो, क्योंकि कोई भी मानवीय जान किसी भी मिशन में हम जानबूझ कर ऐसे दाव पर नहीं लगा सकते, जिसकी सफलता सत प्रतिशत निश्चित न हो।

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि स्पेस एक्स का फाल्कन 9 रॉकेट और क्रू मॉड्यूल् काफ़ी उन्नत किस्म का है। नासा और स्पेस एक्स के साथ ही एक्सम _4 की टीम द्वारा ऐसे कॉमर्सियल क्रू मेंबर मिशन एवं वैज्ञानिक मिशन की सफलता को पुष्ट करता है।

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि क्या खासियत है इस
स्पेस-X ड्रैगन की

यह एक आधुनिक और
उन्नत अंतरिक्ष यान है, जिसे एलन मस्क की कंपनी स्पेस-X ने बनाया है।

इसका पहला मॉडल 2010 में लॉन्च हुआ था, जबकि 2020 में क्रू ड्रैगन का पहला मानव मिशन सफलतापूर्वक पूरा हुआ।

यह अंतरिक्ष यान एक साथ 7 अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने में सक्षम है और पूरी तरह से स्वयं चालित (ऑटोनॉमस) है, लेकिन जरूरत पड़ने पर इसे मैन्युअली;( मानव नियंत्रण) द्वारा भी नियंत्रित किया जा सकता है,
इसमें आधुनिक सुरक्षा सुविधाएं हैं, जो किसी भी आपातकालीन स्थितियों में अंतरिक्ष यात्रियों को हमेशा सुरक्षित रखने में सक्षम हैं ,अब तक के हुए कई प्रमुख मिशन में इस स्पेस एक्स ड्रैगन को कई सफ़ल मिशन में उपयोग किया जा चुका है, 2012 में यह (आई एस एस) तक कार्गो ( महत्वपूर्ण वस्तुएं) ले जाने वाला प्रथम निजी अंतरिक्ष यान बना, और 2020 में क्रू ड्रैगन ने नासा के लिए पहला मानव मिशन पूरा किया। इसके बाद से यह कई कॉमर्सियल ( व्यापारिक) और (साइंटिफिक) वैज्ञानिक मिशनों का हिस्सा रहा है,अब यह यान नियमित रूप से अंतरिक्ष यात्रियों और वैज्ञानिक उपकरणों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ( आई०एस० एस०) तक सफलतापूर्ण पहुंचाता है और वापस भी लेकर आता है। इसकी दोबारा उपयोग (री इयूसेबल) की क्षमता ने ही इसे अति खास बना दिया है।

 

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ( आई एस एस) जिसका साइज़ लगभग एक फुटबॉल मैदान के बराबर है जोकि पृथ्वी से लगभग 402 किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में मौजूद है और लगातार लगभग 28000 किलोमीटर् प्रति घंटे की तेज़ गति से पृथ्वी का चक्कर लगा रहा है जिसका एक दिन पृथ्वी के 90 मिनिट के बराबर होता है और वहां पर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को एक दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त देखने को मिलता है, उसी अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए, 25 जून 2025 को चारों अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर यह फाल्कन 9 रॉकेट से क्रू ड्रैगन में मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों ने उड़ान भरी और अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर चारों अंतरिक्ष यात्रियों का जाना सम्भव हुआ। और फिर 18 दिनों के सफ़ल मिशन के साथ 15 जुलाई 2025 को पृथ्वी के वायुमंडल में दाख़िल हुआ और नासा , स्पेस एक्स एवं एक्सम 4 के वैज्ञानिकों के समूह द्वारा , जोकि 15 जुलाई 2025 की तारीख को भारतीय समयानुसार लगभग 03 बजे अमेरिका के कैलिफोर्निया में ड्रैगन कैप्सूल का स्प्लैश डाउन लैंडिंग ( समुद्र में किसी स्पेस कैप्सूल का उतरना) पूर्ण हुआ, जिसमें मिशन पायलट शुभांशु शुक्ला ( भारत) और कमांडर पिग्गी विइटसन ( अमेरिका) के साथ ही दो और अन्य अंतरिक्ष यात्रियों में साबोत्ज उज्नसकी ( पोलैंड) और तिवोर कापू ( हंगरी ) शामिल थे।

खगोल विद अमर पाल सिंह ने बताया कि हमारे देश भारत से आज से लगभग 41 बर्ष पूर्व सन 1984 में भी राकेश शर्मा ने अंतरिक्ष की यात्रा की थी तब वह यू ०एस० एस ०आर ० (आधुनिक रूस) के सोयूज 7 से अंतरिक्ष में गए थे, तब उन्होंने अंतरिक्ष में 7 दिन 21 घंटे 40 मिनट बिताए थे लेकिन अब आज के भारत के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला जोकि नासा, और एक्शम 4 मिशन से स्पेस एक्स के रॉकेट से ड्रैगन क्रू के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर अति महत्वपूर्ण प्रयोगों को अंजाम देने के साथ ही भारतीय वैज्ञानिक युग का एक और ज्ञान रूपी नया बीज बोकर सकुशल बापिस आए हैं जो कि निकट या दूर भविष्य में ही सही हमारे देश के इतिहास में यह अंतरिक्ष यात्रा भी हमे भविष्य में होने वाली अंतरिक्ष यात्राओं के लिए महत्वपूर्ण जानकारियों को हासिल करने में मददगार साबित होगी क्योंकि यह यात्रा किसी भी भारतीय अंतरिक्ष यात्री की आई० एस ०एस ०पहली यात्रा थी , इस यात्रा के द्वारा और भविष्य में होने वाले स्वदेशी एवम् अन्य देशों से सहयोगपूर्ण भारतीय अंतरिक्ष मिशन जैसे गगन यान, और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन इत्यादि मिशन में प्रभावी कदम के तौर पर देख सकते हैं और अन्य प्रकार के मिशन को और भी ज्यादा संभव एवं सटीक बना सकते हैं, और जैसा कि शुभांशु शुक्ला जी ने भी राकेश शर्मा जी की उस 41 बर्ष पूर्व की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भारत आज भी सारे जहां से अच्छा दिखता है, और इसीलिए हम कह सकते हैं कि निःसंदेह यह अंतरिक्ष यात्रा भी इस अंतरिक्ष युग में भारत के लिए एक मील का पत्थर साबित होगी।

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