प्रो. करुणेश शुक्ल जी का निधन: भारतीय विद्या और संस्कृति के मर्मज्ञ विद्वान का अवसान

गोरखपुर: भारतीय संस्कृत साहित्य, बौद्ध दर्शन, और शोध के क्षेत्र में अपना अभूतपूर्व योगदान देने वाले, दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और एम कला संकाय के पूर्व अधिष्ठाता, आचार्य करुणेश शुक्ल जी का निधन भारतीय शिक्षा और विद्या के क्षेत्र में एक अपूरणीय रिक्तता का कारण बन गया है। 13 जनवरी 2025 को उनका निधन गोरखपुर शहर सहित सम्पूर्ण भारतीय विद्या जगत के लिए एक गहरे शोक का कारण बना है।
प्रो. करुणेश शुक्ल जी का जीवन भारतीय ज्ञान परंपरा और संस्कृति के संवर्धन का प्रतीक था। उनका कार्यक्षेत्र न केवल गोरखपुर विश्वविद्यालय तक सीमित था, बल्कि उन्होंने संस्कृत, पाली, प्राकृत और बौद्ध दर्शन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपूर्व योगदान दिया। गोरखपुर विश्वविद्यालय में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने न केवल विद्यार्थियों को संस्कृत साहित्य के गहरे तत्त्वों से अवगत कराया, बल्कि भारतीय संस्कृति और बौद्ध दर्शन के महत्व को भी फैलाया।
नागार्जुन बौद्ध प्रतिष्ठान और भारतीय संस्कृति का संरक्षक
प्रो. शुक्ल जी ने 1978 में नागार्जुन बौद्ध प्रतिष्ठान की स्थापना की, जो आज न केवल गोरखपुर, बल्कि सम्पूर्ण भारत और नेपाल के शोधार्थियों के लिए एक अमूल्य धरोहर बन चुका है। इस प्रतिष्ठान में 5,000 से अधिक दुर्लभ पांडुलिपियां और लगभग 16,000 पुस्तकें संरक्षित हैं, जिनमें संस्कृत, पाली, प्राकृत, मैथिली, बांग्ला और अन्य प्राचीन लिपियों में लिखी गई पांडुलिपियां शामिल हैं। इन पांडुलिपियों में 7वीं और 8वीं शताब्दी की पांडुलिपियां भी शामिल हैं, जिनमें आचार्य असंग की ‘श्रावक भूमि’ और कंबलपाद की ‘हेरुक साधन पंजिका’ जैसी अत्यंत महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं।
प्रो. करुणेश शुक्ल जी ने इन दुर्लभ पांडुलिपियों और ग्रंथों के संरक्षण के लिए अथक परिश्रम किया और एक समय ऐसा आया जब यह प्रतिष्ठान भारतीय विद्या जगत का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। उन्होंने न केवल पांडुलिपियों का संग्रहण किया, बल्कि इनका संरक्षण भी किया, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ इनसे लाभान्वित हो सकें।
आचार्य करुणेश शुक्ल नागार्जुन बौद्ध ग्रंथालय का योगदान
प्रो. शुक्ल जी का योगदान केवल पांडुलिपियों के संरक्षण तक ही सीमित नहीं था। उन्होंने सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु में “आचार्य करुणेश शुक्ल नागार्जुन बौद्ध ग्रंथालय” की नींव रखी, जो अब संस्कृत, पाली और प्राकृत भाषाओं के विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए एक अद्वितीय स्रोत बन चुका है। इस ग्रंथालय में संग्रहीत कृतियाँ भारतीय संस्कृत और बौद्ध साहित्य के गहरे अध्ययन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सिद्धार्थ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरि बहादुर श्रीवास्तव द्वारा इस ग्रंथालय का उद्घाटन किया गया था, जिसमें विश्वविद्यालय के सभी वरिष्ठ सदस्य उपस्थित थे।
रचनात्मक योगदान और बौद्ध संस्कृत साहित्य का इतिहास
प्रो. शुक्ल जी ने “बौद्ध संस्कृत साहित्य का इतिहास” जैसी महत्त्वपूर्ण रचना लिखी, जिसमें उन्होंने बौद्ध संस्कृत साहित्य की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परतों को गहराई से उजागर किया। यह ग्रंथ बौद्ध दर्शन के अध्ययन में अत्यधिक सहायक है। उनके द्वारा रचित यह ग्रंथ अब भी अनुसंधानकर्ताओं के लिए एक प्रमुख संदर्भ स्रोत है। उनका कृतित्व न केवल उनके समय में, बल्कि आने वाले दशकों तक विद्वानों को मार्गदर्शन प्रदान करेगा।
शोक संवेदनाएं और श्रद्धांजलि
प्रो. करुणेश शुक्ल जी के निधन पर गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. कविता शाह ने गहरी शोक संवेदना व्यक्त की और कहा, “प्रो. शुक्ल जी का निधन भारतीय विद्या जगत के लिए एक अभूतपूर्व क्षति है। उनका जीवन शिक्षा, शोध और संस्कृति के प्रति समर्पण का जीवंत उदाहरण था। उनके योगदान को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता।”
प्रो. शुक्ल जी के समर्पण और उनके द्वारा किए गए कार्यों को ध्यान में रखते हुए, कई विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि उनका योगदान भारतीय विद्या की धरोहर के रूप में हमेशा जीवित रहेगा। उनके निधन से जो रिक्तता उत्पन्न हुई है, उसे पूरा करना आसान नहीं होगा।
भविष्य की दिशा: उनकी विरासत का संरक्षण
प्रो. शुक्ल जी की शर्तों और उनके जीवन के आदर्शों को ध्यान में रखते हुए, नागार्जुन बौद्ध प्रतिष्ठान और आचार्य करुणेश शुक्ल नागार्जुन बौद्ध ग्रंथालय का और विस्तार किया जाएगा, ताकि उनकी विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाया जा सके। उनके द्वारा स्थापित संस्थाएँ और कृतियाँ भविष्य में भारतीय संस्कृत और बौद्ध साहित्य के अध्ययन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण रहेंगी।
प्रो. करुणेश शुक्ल जी की विद्वत्ता, संस्कृति और विद्या के प्रति निष्ठा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगी। उनका योगदान भारतीय शिक्षा जगत में अमर रहेंगे