तीन नाटकों में दिखे जिन्दगी के मुख्तलिफ रंग वाल्मीकि रंगशाला में डेढ़ इंच ऊपर, टकुलता व बात का बतंगड़ का मंचन
लखनऊ, 25 अक्टूबर। इंसानी जिंदगी अनगिनत रंगों से भरी है। ऐसे मायावी संसार में जीवन दर्शन, जज्बात और परिस्थितियों में फंसे चरित्रों के कड़वे, खट्टे-मीठे, गुदगुदाते अनुभवों को रंग प्रेमियों ने आज शाम तीन मंचीय प्रस्तुतियों वाल्मीकि रंगशाला गोमतीनगर में साझा किया। डेढ़ इंच ऊपर, टकुलता व बात का बतंगड़ का मंचन यहां बिम्ब सांस्कृतिक समिति के नाट्य समारोह में संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की रंगमंडल योजना में संस्कृति निदेशालय उत्तर प्रदेश के सहयोग से किया गया।
हंसी हंसी में व्यक्तिगत उलझनों और समाज की समस्याओं को सहजता से सामने रखने वाली अंतिम नाटिका बात का बतंगड़ ने दर्शकों को खूब गुदगुदाया। महर्षि कपूर के निर्देशन में तमाल बोस के लिखे इस नाटक में मकान की समस्या, बेटियों की सुरक्षा, माता-पिता की चिंता के साथ यह सबक भी है कि एक झूठ बोलोगे तो सौ झूठ और बोलने होंगे। मकान मालिक पोखरमल घर के कमरे तो किराये पर उठाना चाहते हैं, लेकिन अपनी खूबसूरत जवान बेटी शालू को लेकर परेशान हैं कि कहीं कोई कुंआरा किरायेदार उनकी बेटी को बरगला कर भगा न ले जाये। लिहाजा वे अपना कमरा इस शर्त पर किराये पर देना चाहते हैं कि किरायेदार शरीफ और शादीशुदा हो। कमरा ढूंढते ढूंढते परेशान नायक कुंआरा प्रसाद इस मकान में कमरा किराये पर पाने के लिए अपने आपको शादीशुदा बता देता है। यहीं से उसके लिये मुश्किलें खड़ी हो जाती हैं। मकान हाथ से न निकल जाए, इस कश्मकश में उसे झूठ पर झूठ बोलने और बुलवाने पड़ते हैं। ऐसे में विरोधाभासी हालात और बयान पैदा होने से बातें और उलझ जाती हैं। इन्हीं स्थितियों से उपजा हास्य दर्शकों को खूब हंसाता है। समस्याओं में उलझे कुंआरा प्रसाद की उलझनें तब सुलझती हैं, जब उसके बड़े पापा आते हैं। सभी के झूठों की पोल खुलती है। साथ ही संदेश मिलता है कि झूठ फरेब से दूर रहो। नाटक में पुराने फिल्मी गीतों के टुकड़ों का प्रयोग भी हास्य पैदा करता है।
मंच पर मिस लिली के रूप में शान्ति गुप्ता, माधुरी के रूप में अनामिका सिंह, शालू के रूप में स्पर्धा पाण्डेय और कुंआरा के रूप में अभिषेक पाल के साथ अन्य चरित्रों में शनि मौर्या व विवेक रंजन सिंह, सनुज प्रजापति, दक्ष कपूर, कृष्ण कुमार पाण्डेय, कुलदीप श्रीवास्तव, कशिश सिंह, शाहिद अली, रोहित श्रीवास्तव, विकास राजपूत व उज्जवल सिंह उतरे। मंच के पीछे के दायित्वों को अभिषेक पाल, कुलदीप, अनूप अवस्थी, अनामिका सिंह, सरिता कपूर पूनम बोस, सनुज प्रजापति, नियति नाग, श्रीमती शशि वर्मा, मुकेश वर्मा, राजीव प्रकाश, मोहित, ऋषि नाग, राकेश कोहली, डीके मोदी, राकेश खरे व सीएसआर सिंह ने निभाया। प्रकाश व्यवस्था तमाल बोस ने संभाली। महर्षि के ही निर्देशन में इससे पहले आरके नाग के रचे एकल नाटक टकुलता को अभिषेक कुमार पाल ने जीते हुए विजय और बाला टकुलता के सच्चे प्यार की कहानी को जीवन में आये उतार चढ़ावों के साथ पेश किया।
क्या हम अपने आसपास के लोगों को जानते-समझते हैं, ऐसे सवाल उठाती पहली प्रस्तुति निर्मल वर्मा की कहानी डेढ़ इंच ऊपर पर आधारित पृथ्वी रंगमंच कानपुर की आंचल शर्मा के निर्देशन में आशुतोष द्वारा अभिनीत थी। इस अवसर पर कलाकारों और कला विद्वानों को सम्मानित भी किया गया।