यूपी में उपचुनाव का बिगुल बज चुका है। 13 नवंबर वोटिंग होना और 23 नवंबर को मतगणना की तिथि निश्चित हुई । गठजोड़ की राजनीति में गाँठ अभी तक फँसी हुई है।
यूपी में उपचुनाव का बिगुल बज चुका है। 13 नवंबर को वोट पड़ने हैं और 23 नवंबर को मतगणना की तिथि निश्चित हुई है। नामांकन आज से शुरू हो गए हैं। इसके बावजूद भी सियासी पारा अभी भी सुस्त है। गठजोड़ की राजनीति में गाँठ अभी तक फँसी हुई है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सीटों के बंटवारे की रार को हरियाणा के चुनाव परिणाम ने थाम लिया है फिर भी कांग्रेस आलाकमान अभी भी संतुष्ट नहीं है और मझवां सीट पर प्रदेश अध्यक्ष अजय राय के चुनाव लड़ने की मंशा पर पानी फिरने से कांग्रेस अभी किसी हलचल में नहीं है। आईएनडीआईए में तो फिर भी सहमति बनती दिख रही है और समाजवादी पार्टी अपने प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है लेकिन एनडीए अभी भी अलग-थलग दिखाई दे रहा है। रालोद को एक सीट देने के संकेत से जाटलैंड पश्चिम तो शांत है लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के घटक दल निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) ने चुनौती खड़ी कर दी है। निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सूबे के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद ने कटेहरी और मझवाँ सीट पर पहले से दावेदारी ठोक रखा है। उनका कहना है कि हमारा गठबंधन पाँच सालों के लिए हुआ है। 2022 विधानसभा चुनाव के सीट बँटवारे में मझवां और कटेहरी सीट निषाद पार्टी के खाते में थी और हमने अपने सिंबल पर चुनाव लड़ा था। मझवां में हमारी जीत हुई थी और कटेहरी में हम कुछ अंतर से पीछे रह गए थे जबकि इस विषय पर अभी भाजपा हाईकमान का निर्णय आना बाकी है। उन्होंने कहा कि भाजपा हमारा बड़ा दल है और हमें उम्मीद है कि वह हमारे साथ न्याय करेंगे।
भाजपा उपचुनाव में सभी 10 सीट जीतने का दावा कर रही थी जबकि मिल्कीपुर का चुनाव तकनीकी कारणों से रुका हुआ तो अब 9 सीट जीतने का दावा कर रही है। निषाद पार्टी, अपना दल, भाजपा और रालोद सभी सरकार में सहभागी हैं और एनडीए के घटक दल हैं। अपना दल और भाजपा चुप भले हैं लेकिन यह सीट बंटवारे को लेकर पहले से ही असंतुष्ट हैं ऐसे में निषाद पार्टी को बाहर करना भाजपा के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। निषाद पार्टी की पैठ उपचुनाव के लगभग सभी 9 सीटों पर है। मझवा में लगभग निषाद की उपजाति बिंद और निषाद मिलकर लगभग 80000 है, फूलपुर में लगभग 28000 निषाद हैं, कटेहरी में निषादों की संख्या 35000 के पार है, शीशामऊ में लोध और कश्यप लगभग 20000 के पार हैं, कुंदरकी में निषाद और लोध मिलकर 20000 के पार हैं, मीरपुर में अकेले कश्यप 15000 हैं, गाजियाबाद, खैर और मीरपुर में निषाद पार्टी के कार्यकर्ता 15000 से ज़्यादा वोटों का दावा कर रहे हैं। निषाद, बिंद, लोध, कश्यप, तुरिया, कांस्यकार, मझवार सहित जल-जंगल-ज़मीन पर आश्रित सभी जातियां अपना नेता संजय निषाद को मानती हैं। इस समीकरण से भाजपा को निषाद पार्टी को असंतुष्ट रखना उनके लिए भारी पड़ सकता है।
समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर पीडीए को अपना हथियार बनाया है तो माता प्रसाद पाण्डेय को नेता प्रतिपक्ष बनाकर ब्राह्मणों को साधने की कोशिश भी किया है। भाजपा भी पिछड़ी जाती को साधने की कोशिश में है और उत्तर प्रदेश का गठबंधन अनुकूल भी है लेकिन जिस प्रकार निषाद पार्टी अध्यक्ष ने राष्ट्रीय पदाधिकारी और विधायक दल की बैठक बुलाई है यह संकेत ठीक नहीं है। ऐसे में भाजपा आलाकमान को हस्तक्षेप करके जल्द ही मामला सुलझाना होगा नहीं तो चुनौतियाँ और बढ़ती ही जाएँगीं। दूसरी तरफ़ भाजपा संगठन, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उपमुख्यमंत्री सबकुछ ठीक होने का दावा कर रहे हैं लेकिन अभी सबकुछ ठीक नहीं है ऐसा स्पष्ट दिख रहा है।