उत्तर प्रदेशलखनऊ

महिलाओं के लिए सुरक्षित आश्रय और पुनर्वास की मांग पर शालिनी सिंह पटेल की पहल, मंत्री अरविंद शर्मा ने दिए सकारात्मक संकेत

लखनऊ/बांदा। जनता दल यूनाइटेड (उत्तर प्रदेश) की प्रदेश उपाध्यक्ष शालिनी सिंह पटेल ने आज लखनऊ स्थित मंत्री आवास पर नगर विकास, नगरीय रोजगार, ऊर्जा एवं गरीबी उन्मूलन मंत्री अरविंद कुमार शर्मा से मुलाक़ात की। इस दौरान उन्होंने जनपद बांदा की बेसहारा, पीड़ित और उपेक्षित महिलाओं की दयनीय स्थिति को लेकर एक विस्तृत संवैधानिक मांग-पत्र सौंपा।

शालिनी सिंह पटेल ने मांग-पत्र में भारत के संविधान के अनुच्छेद 15(3), 16, 21 और 39 का हवाला देते हुए राज्य सरकार से आग्रह किया कि बांदा जैसी पिछड़ी ज़िलों में उन महिलाओं के लिए आश्रय, पुनर्वास, स्वरोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की समेकित योजना लागू की जाए, जो घरेलू हिंसा, परित्याग, विधवापन या अन्य सामाजिक परिस्थितियों के कारण सामाजिक सुरक्षा से वंचित हैं।

उन्होंने कहा, “बांदा में अनेक महिलाएं हैं जिनके पास न रहने की व्यवस्था है, न रोजगार का साधन और न ही स्वास्थ्य या शिक्षा की कोई गारंटी। ऐसी परिस्थिति में कई बार वे अवसाद, आत्महत्या और बाल श्रम जैसे गंभीर संकटों में फँस जाती हैं। यह संविधान में दिए गए जीवन और गरिमा के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”

शालिनी सिंह ने पाँच प्रमुख मांगें प्रस्तुत कीं:

1. महिला आश्रय गृह की स्थापना

2. स्वरोजगार प्रशिक्षण केंद्र

3. निःशुल्क एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

4. निःशुल्क स्वास्थ्य सुविधाएं व महिला अस्पताल

5. मानसिक स्वास्थ्य एवं विधिक सहायता केंद्र

 

मुलाक़ात के दौरान मंत्री अरविंद शर्मा ने उक्त मुद्दों को गंभीरता से सुना और कहा कि यह एक “बहुत अच्छा और ज़रूरी सुझाव है, जो वास्तव में महिलाओं के हित में है। सरकार इस पर शीघ्र विचार कर कार्य योजना तैयार करेगी।” उन्होंने भरोसा दिलाया कि महिलाओं के लिए आशियाना और आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस क़दम उठाए जाएंगे।

शालिनी सिंह पटेल ने मंत्री के सकारात्मक रुख के लिए उनका आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मंत्री जी ने मेरी बातों को बहुत ध्यानपूर्वक सुना और महिलाओं की पीड़ा को समझते हुए स्पष्ट आश्वासन दिया है कि वे स्वयं इस विषय को आगे बढ़ाएंगे। यह मेरे लिए नहीं, उन बेसहारा महिलाओं के लिए आशा की किरण है जिनकी आवाज़ अक्सर अनसुनी रह जाती है।”

यह पहल सामाजिक न्याय, समता और मानवीय गरिमा जैसे संवैधानिक मूल्यों को ज़मीनी हकीकत में बदलने की दिशा में एक अहम क़दम मानी जा रही है।

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