योगी सरकार कुछ भी कर ले परंतु थमने का नाम नहीं ले रहा सरकारी डॉक्टरों द्वारा गरीबों के खून चूसने का खेल

उत्तर प्रदेश में अभी भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा जहां उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने के संकल्पित सोच के साथ लगातार योगी सरकार अपने कर्तव्यनिष्ठ टीम के साथ मेहनत करते हुए जनता तक सभी प्रकार की सरकारी सुविधाओं को शत प्रतिशत पहुंचाने में लगी है तो वही आज भी कुछ ऐसे विभागों में कार्यरत कुछ सरकारी नुमाइंदे है जो सरकार की शानदार विकासशील क्षवि को धूमिल करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे है ।ऐसी बात जब स्वास्थ्य से जुड़ी हो तो हर कोई सोचने पर विवश हो जाता है।
ऐसा ही मामला महाराजगंज जनपद अंतर्गत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निचलौल का प्रकाश में आया है जहां तैनात डॉक्टर साहब अस्पताल की ओपीडी में कम समय देते है क्योंकि वहां से उनको वेतन से अलग कुछ नहीं मिलता जबकि अपने सरकारी आवास पर अधिक समय देते है क्योंकि वहां से उनको परामर्श शुल्क के रूप में दो सौ रुपए के साथ साथ महंगी एम आर पी वाली दवाओं से कमीशन अधिक मिल जाता है जो उनके सरकारी वेतन के बाद का होता है। अब ऐसे में प्रश्न उठना लाजमी है कि जनता को बेहतर स्वास्थ सुविधा मुहैया कराने के लिए सरकार भले ही हर संभव प्रयास कर रही हो लेकिन जब भगवान की उपमा दिए जाने वाले डॉक्टर ही ऐसा पक्षपात पूर्ण रवैया अख्तियार करेंगे और सरकारी आवास पर निजी प्रैक्टिस कर गरीब मरीजों की जेब पर डाका डालते रहेंगे तो आम आदमी या सरकार क्या कर सकती है।
सरकारी चिकित्सक निजी प्रैक्टिस कर मरीजों का शोषण ना करें इसलिए सरकार ने डॉक्टरों को एन पी ए नॉन प्रैक्टिस अलाउंस दे रही है। जिसमें वेतन के अनुपात में 25 प्रतिशत अतिरिक्त दिया जा रहा है। ताकि वह प्राइवेट प्रैक्टिस ना करें। इसके बावजूद भी अगर ऐसा किया जाए तो कहीं न कहीं सरकारी आदेशों को दरकिनार करने जैसा ही है सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र जहां पर अस्पताल के समय में ही डॉक्टर साहब निजी प्रैक्टिस करने में मशगूल रहते हैं। जिससे दूर दराज से आए मरीजों को बिना जेब ढीली किये यहां पर स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र निचलौल जहां की परंपरा बन गई है कि जिस भी डॉक्टर की तैनाती की जाती है
वह अस्पताल में मरीजों को ना देख कर अपने सरकारी आवास पर अस्पताल के समय में ही 200 रुपए शुल्क लेकर मरीज देखते हैं। उसके बाद उन्हें बाहर की दवाएं लिखी जाती हैं। जिनमें इन चिकित्सकों का बकायदा कमीशन होता है।
बताते चले कि यहां पर तैनात चिकित्सक डॉक्टर अंग्रेज सिंह ने सारे नियम कानून को ताक पर रखकर अपने आवास को बकायदा क्लीनिक का रूप दे दिया है।
आरोप है कि साहब अस्पताल में मरीजों को नहीं देखते हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि अस्पताल के मुख्य गेट पर स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मचारी कुर्सी लगाकर बैठ जाते हैं। ऐसे में अस्पताल आए मरीजों को सीधे डॉक्टर साहब के पास भेजा जाता है।
वहां पर सुबह से शाम तक लेकर मरीजों की भीड़ लग जाती है। यहां पर मरीजों से 200 रुपए फीस लेकर फिर सारी दवाएं बाहर की लिखी जाती है। उसके लिए आसपास के कुछ मेडिकल स्टोर भी निर्धारित कर दिए गए हैं। यह दवाएं सिर्फ उसी मेडिकल स्टोर पर मिलेंगी।
जांच के नाम पर तो जमकर लूट की जाती है। इसके लिए भी पैथोलॉजी सेट है। कमीशन बाजी के चक्कर में यहां पर मरीजों के स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ किया जाता है।