स्वतंत्रता आंदोलन के नायक वीरा पासी की जयंती की शुभकामनायें व कृतज्ञ राष्ट्र का शत शत नमन

जलियांवाला बाग के बाद दूसरे सबसे बड़े सामूहिक नरसंहार की गवाह बनी थी रायबरेली की माटी, जहां अंग्रेजों ने सैकड़ों किसानों को घेरकर बर्बरतापूर्वक गोलियों से भून दिया था. उसी रायबरेली की धरती ने स्वाधीनता की लड़ाई में वीरा पासी जैसा नायक दिया. इस नायक ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए, लेकिन एससी होने के कारण इतिहास के पन्नों में उसके साथ इंसाफ नहीं हुआ. वीरा पासी के खौफ का आलम यह था कि उसके साहस और ताकत से अंग्रेजों की रूह कांपती थी. इस योद्धा से खौफजदा अंग्रेजी सरकार ने वीरा पासी को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए 50 हजार रुपये का इनाम घोषित किया था. आप इस बात को समझ सकते हैं कि तब के जमाने में 50 हजार रुपये की कीमत क्या होती थी.
नवाब वाजिद अली शाह की गिरफ्तारी के बाद उनकी वीरांगना पत्नी बेगम हजरत महल की अगुवाई में अनेक राजा और जमींदारों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. इसमें रायबरेली क्षेत्र (बैसवाड़ा) के राणा बेनी माधव भी शामिल थे. इस विद्रोह में राणा बेनीमाधव का मुख्य सिपहसालार वीरा पासी थे.
वीरा का जन्म रायबरेली के भीरा गोविंदपुर या लोधवारी गांव में हुआ बताते हैं, उसके बचपन का नाम हीरा था. उसके पिता का नाम सुखवा और माता का नाम सुरजिया व बहन का नाम बतसिया था. वह बचपन से ही साहसी और निर्भिक थे. उनकी कसरती देह किसी भी विपत्ति के लिए एक चुनौती थी. कुश्ती और कसरत वीरा का सगल था. महज 18 साल की उम्र में ही वह राणा बेनीमाधव की सेना में भर्ती होने के लिए उनके महल में पहुंच गए. राणा ने पूछा-तुम कौन हो? वीरा बोला-गोविंदपुर का वीरा हूं. राणा ने कहा-मेरी सेना में भर्ती होने से पहले तुम्हें शारीरिक इम्तहान देना होगा. उसके बाद राणा बेनीमाधव ने वीरा की छाती पर दो मुक्के मारे, लेकिन वीरा टस से मस नहीं हुआ.
वीरा पासी की ताकत को देखकर राणा बेनीमाधव ने उसे अपनी सेना में भर्ती कर अपना अंगरक्षक नियुक्त कर लिया. राणा बेनीमाधव ने जब अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजाया, तब वीरा पासी ने उनके नेतृत्व में लडते हए अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए. एक बार अंग्रेजी सेना ने राणा बेनीमाधव को चारों ओर से घेरकर पकड़ लिया और उन्हें जेल में डाल दिया. उनको छुडाने में किसी रिश्तेदार ने कोई मदद नहीं की. तब अंग्रेजों से राणा बेनीमाधव को छुड़ाने के लिए उनकी पत्नी चन्द्रलेखा ने एक बीड़ा रखा, जिसे वीरा पासी ने उठा लिया. राणा बेनीमाधव को बाल दोहका किले (वर्तमान में किला बाजार) में रखा गया था. अंग्रेजों ने इसे छावनी में तब्दील कर रखा था. वीरा पासी ने अंग्रेजों की छावनी को भेदकर बड़ी चतुराई और कुशलता के साथ राजा को जेल से निकाल बैसवाड़ा पहुंचा दिया था, जिसके बाद अंग्रेज वीरा से थर्राने लगे थे.
इतिहास में दर्ज है कि अंग्रेज सरकार को रायबरेली में हर बार मुंह की खानी पड़ी थी. इसका सारा श्रेय वीरा पासी को जाता है. एक बार भीरा गोविंदपर में अंग्रेजों ने जब राणा बेनीमाधव को घेर लिया और निश्चित हो गया था कि उनकी जान नहीं बच पाएगी, तब वीरा ने अपने बाहुबल से राणा बेनीमाधव को वहां से सकुशल निकाल लिया. कहा जाता है कि इस लड़ाई में वीरा का घोड़ा मारा गया था. अंततः वीरा पासी धोखे से पकड़ा गया और फांसी पर लटका दिया गया।
बरेली के इतिहास में अहम भूमिका निभाने के बावजूद इतिहास में वीरा पासी का कोई खास जिक्र नहीं आता. जिस जिले ने इस देश को सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री दिया. वहीं का यह वीर नायक इतिहास के पन्नों में दर्ज होने से रह गया है. चुनाव के दौरान राजनीतिक दल और नेता पासी समुदाय की बस्ती में तो वीरा पासी का जिक्र करते हैं, लेकिन दूसरे समदाय की बस्ती में इस वीर योद्धा का नाम लेना भी उचित नहीं समझते हैं. अफसोस तब और होता है जब रायबरेली में अपने को एससी का रहनुमा कहने वाले और एससी समुदाय के हितैषी होने का दम भरने वाले लोग भी वीरा पासी से अनभिज्ञ हैं. 1857 के विद्रोह में जितना बड़ा योगदान इस एससी नायक का था, उसे उतना सम्मान नहीं मिल सका. आलम यह है कि इस योद्धा की याद में बरेली में कोई स्मारक तक नहीं है.
हालांकि वीरा पासी के नाम को जिंदा रखने में रायबरेली के विधायक अखिलेश सिंह ने बड़ी भूमिका अदा की और इस वीर शहीद के नाम पर “वीरा पासी द्वार” का निर्माण करवाया। रायबरेली के गांव में उसकी वीरता के गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं। जब भी फसल कटती है गांव में चार लाइनों की गूंज सुनाई देने लगती है
“फसल काटी है घर नाचत है दौरी दौरी
विखा बतसिया के मन ललकाने हैं
भरी भरी पेट अब खावि सनि साग भात
फूले तने रोम रोम आज न समाने हैं